1) कुछ बिसरे दिन, कुछ लोग पुराने गर फिर से साथ हो जाए तो ये दीवाली फिर से इक बार मीठी और खास हो जाए दिवाली की छुट्टियों के होमवर्क से सजे होते थे नई कॉपियों के पन्ने पहले उसके बाद उसमें होता था एक अधूरा होमवर्क और फिर पूरी खाली नोटबुक हरबार की तरह मगर जिसमें छुपी होती थी ढेरों खुशियां, खुद गुम होकर खेल को रोक देने वाली एक पीली टेनिस बॉल छुप्पम छुपाई में नीम की ओट में छुपे लड़के का झांकता चेहरा मेहमानों से मिलने वाला एक रूपया उससे खरीदी हुई चंद टॉफियां और गले में उतरती हुई उनकी मिठास शाम को थक तो जाते थे हमारे नन्हे जिस्म मगर फिर भी रूह को छू लेती थीं खुशियां,अपनो और अपनेपन के बीच सुकूँ से भरी हुई थी छोटी सी इक हमारी जन्नत आज कहीं फिर से हमें बस वही रूहानी अहसास हो जाए तो ये दीवाली एक बार फिर से मीठी और खास हो जाएं 2) आंगनों को लीपती कोरती दीवारों को बुआ चाचियों की खिलखिलाहटें नवोढ़ाओ की फुसफुसाहटें बुजुर्गों के कदमों की आहटें मां की रसोई में घूघरी की मीठी खुशबू गीली माटी को खूंदते और उस आंगन को फिर नया बनाते हुए हमारे नन्हे नन्हे पांव इतन