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ज़ब से जानी ग़म की फितरत...

दर्द बिखरा है यहाँ पर है हंसी सोई हुई चैन किसको,हर जग़ह ज़ब बेबसी सोई हुई उस पिता का दर्द देखो नूर जिसका चल दिया आज है ताबूत में इक वापसी सोई हुई बाग़ था ख़ामोश बिलकुल रात रोई रात भर वहशियों ने ज़ब कुचल दी हर कली सोई हुई चाँद से आई उतरकर डालियों पर झूल कर मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई जब से जानी ग़म की फितरत फ़िक्र मैं करता नहीं पास में हर ग़म के जो थी इक ख़ुशी सोई हुई। प्रकाश पाखी