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आएगी कोई बात बातों से निकल,तू बात कर

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गर है जिगर,तकदीर जाती है बदल,तू बात कर उसको बता अपनी मुहब्बत आज चल, तू बात कर इजहारे दिल कर,डर है रुसवा हो न जाए,गर तुझे आएगी कोई बात बातों से निकल,तू बात कर  क्या इश्क कर सकता नहीं,दुनिया ये संगदिल है तो क्या  हों अश्क गर सच्चे,पत्थर जाते पिघल,तू बात कर  नाकामियों पर बात नश्तर सी करे दुनिया वैसे  जाती है तेरी कामयाबी से भी जल,तू बात कर  गर शायरी की बात है,हर ग़म सुखन पाखी बने  हो चोट दिल पर,दर्द से बनती ग़जल तू बात कर आपका  प्रकाश पाखी  

जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी

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  दीपावली  जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी रजनी से गहरी निस्बतों में हो सुब्ह की ताजगी   भोपाल का न्याय  अब खद्दरें खामोश हैं,अब मरघटों सा मौन है गर कत्ल है इन्साफ का, तो लाश है भोपाल की  नौकरशाही  दफ्तर गया, चप्पल घिसे, अब तो कबीरा मान जा  अफसर करे ना काम, ज्यूँ अजगर करे ना चाकरी  अयोध्या निर्णय  सेंकी सियासत ने सदा जिस आग पर है  रोटियां सब मिल बुझा दें जो इसे, हो देश में दीपावली आर्थिक संकट,खेल और भारत   तूफ़ान में अविचल रहा, दिल्ली में यह अव्वल रहा  अब मेरे हिन्दुस्तान की तू देख पाखी बानगी   प्रकाश पाखी 

सोने सी सच्ची वो मुझको रोज मनाती मेरी माँ

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चैन से सारी रात मैं सोता, जागी रहती मेरी मां  नींद उमचता जब भी मैं तो थपकी देती मेरी मां आंगन में  किलकारी भर भर ता ता थैया दौड़ा था जब भी गिरने लगता था मैं पीछे रहती मेरी मां पट्टी पुस्‍तक, बस्‍ता देकर छोड़ तो आई थी मुझको  शाला में रोता था मैं और घर पर रोती मेरी मां गुस्से पर उसके गुस्सा कर मैं भूखा सो जाता   था   मेरे खाना खा लेने तक रहती भूखी मेरी मां अपनी गलती पर भी झगड़ा कर मैं रूठा करता था सोने सी सच्ची वो मुझको रोज मनाती मेरी   माँ   कक्षा में अव्वल आकर जब उसके अंक लिपटता था आंखों में आंसू भर कर बस हंसती रहती मेरी मां उम्र हुई है लेकिन अब भी वो जैसे की तैसी है बेटे ने खाना खाया क्या पूछा करती मेरी माँ      प्रकाश पाखी  समीर जी की एक पोस्ट उन्होंने अपनी माँ पर लिखी थी ...काफी देर तक पढ़ कर कुछ भी नहीं कह पाया कुछ पंक्तियाँ जेहन में आई और कई दिनों तक अपनी माँ से दूर रहने से उनकी याद आई और आँखों में कुछ नमी सी आई ...वह एक ऐसी पोस्ट थी जिसे पढ़ कर कुछ भी टिप्पणी नहीं कर पाया...उन पंक्तियों को गुरुदेव पंकज सुबीर जी को भेज

यूँ तो किस किस को ना कहा दोषी

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था रिभु जिस गुनाह का दोषी  चुप थी अहल्या जिसे कहा दोषी  न्याय जब जब न कर सके गौतम  शैल तू बनकर उसे बना दोषी  जब जले घर किसी के,चुप थे सब  कह रहे अब कि थी हवा दोषी  अपने हाथों चुनी थी बर्बादी  अब कहे है तेरी दुआ दोषी  हार के कसूरवार थे खुद ही  यूँ तो किस किस को ना कहा दोषी  प्रकाश पाखी