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न्याय

ऐसे कैसे पैसे से बिक कर बस हो जाता न्याय मासूमों को कुचल किनारे थक कर फिर सो जाता न्याय रूपये भर की रिश्वत पर तीस साल तक केस चले जेलों की कोठरियों में जाकर फिर खो जाता न्याय तगड़े तगड़े पैसे वाले तगड़े उनके पैरोकार हार मानकर हामी भरता इनके घर जो जाता न्याय अरबों खरबों लूट गए देखो फिर भी छूट गए रामम नामम सत्यम फिर ऐसे ही हो जाता न्याय ईंट ईंट का बना घरौंदा तिनका तिनका छत बनी बुलडोजर से बिखर जाए तो हो बेघर रो जाता न्याय पेट किसी का फाड़ दिया लूटी अस्मत मार दिया अब सुधरेगा कम आयु है बच्चा तब हो जाता न्याय धनवानों की रक्षा करता उनका अपना प्यारा श्वान हाथ गरीबों के तोते सा उड़ जाता खो जाता न्याय। प्रकाश पाखी।

सोने सी सच्ची वो मुझको रोज मनाती मेरी माँ

चैन से सारी रात मैं सोता, जागी रहती मेरी मां  नींद उमचता जब भी मैं तो थपकी देती मेरी मां आंगन में  किलकारी भर भर ता ता थैया दौड़ा था जब भी गिरने लगता था मैं पीछे रहती मेरी मां पट्टी पुस्‍तक, बस्‍ता देकर छोड़ तो आई थी मुझको  शाला में रोता था मैं और घर पर रोती मेरी मां गुस्से पर उसके गुस्सा कर मैं भूखा सो जाता   था   मेरे खाना खा लेने तक रहती भूखी मेरी मां अपनी गलती पर भी झगड़ा कर मैं रूठा करता था सोने सी सच्ची वो मुझको रोज मनाती मेरी   माँ   कक्षा में अव्वल आकर जब उसके अंक लिपटता था आंखों में आंसू भर कर बस हंसती रहती मेरी मां उम्र हुई है लेकिन अब भी वो जैसे की तैसी है बेटे ने खाना खाया क्या पूछा करती मेरी माँ      प्रकाश पाखी