यूँ तो किस किस को ना कहा दोषी
था रिभु जिस गुनाह का दोषी चुप थी अहल्या जिसे कहा दोषी न्याय जब जब न कर सके गौतम शैल तू बनकर उसे बना दोषी जब जले घर किसी के,चुप थे सब कह रहे अब कि थी हवा दोषी अपने हाथों चुनी थी बर्बादी अब कहे है तेरी दुआ दोषी हार के कसूरवार थे खुद ही यूँ तो किस किस को ना कहा दोषी प्रकाश पाखी