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फैमिली

चुप चुप सी होली जाती अब ख़ामोशी से राखी आती दीवाली को दिल बेगाने कैसी सबकी है लाचारी बचपन बीता, सबकुछ रीता बंद बंद सी बोलचाल है प्रेम प्यार भी खो गए सारे अब छुप गयी है खुशियाँ सारी कैसे किसको दिखलाना है कैसे किसको नीचे लाना बचा तो केवल अहम वहम है और तानों की मारामारी नफ़रत होती अपनों से अब बेगानों से तगड़ी यारी लहू के रिश्ते,लगें पराये निभजाती है दुनियादारी मतलब से सब मतलब रखते मतलब की है रिश्तेदारी सबसे पहले बदली भौजी फिर भाइयों की आई बारी छुटकी मुन्ना हुए बड़े अब ताया भैया नज़र न आते अपनों के अपमानों में अब मिलती सबको ख़ुद मुख्तारी बहनें भी कहाँ नज़र मिलाती सुने वही जो सुनना चाहती कमियां इतनी,रही गिनाती उलाहनों से ममता हारी सबके अपने अपने रस्ते और खुशियों की अपनी बारी मेरी तो बस फैमिली है माँ बापू और जिम्मेदारी प्रकाश पाख़ी

जुबाँ चुप रहे क्यूँ,तेरी हादसों पर

"दिखा लाल है रंग रंगों से ज्यादा खतरनाक सड़कें हैं बमों से ज्यादा बीमारी से ज्यादा और दंगों से ज्यादा बहा खून सड़कों पर जंगों से ज्यादा" *************************** ये तकरार है हो रही बोलियों पर भड़कते हैं क्यूँ जात पर मजहबों पर फड़कते है बाजू तेरे गोलियों पर जुबाँ चुप रहे क्यूँ तेरी हादसों पर नशा और सफ़र साथ करना कभी ना कि तब मौत है नाचती रास्तों पर जो रफ़्तार से बढ़ चले ज़िन्दगी में थे उनके सफर थम गए हादसों पर पहन लो ये हेलमेट बेल्ट अब लगा लो बचोगे न तुम कर यकीं टोटकों पर डरा मौत से हूँ नहीं आज तक मैं गवारा नहीं है मरूं रास्तों पर मेरा खून है तो अमानत वतन की अगर मौत आये तो मरूं सरहदों पर मुहाफ़िज़ न बच्चे न पैदल यहाँ पर बड़ी बेरहम है सड़क सिग्नलों पर ओ ईनाम लौटाने वालों कहो कुछ मैं हैरान हूँ तेरी खामोशियों पर प्रकाश पाखी