इस तल्ख़ दुनियाँ में भी कोई तो अपना निकला
यह जानकर आँखों से अश्क़ों का दरिया निकला ।
मख़सूस मेरा दुश्मन मेरा ही लहजा निकला ।
रखता है चाहत दिल ओ जां से भी बढकर मुझसे ,
इस तल्ख़ दुनियाँ में भी कोई तो अपना निकला ।
मासूमियत है उसके भावों में बादल जैसी ,
बस देख लेने भर से बारिश में भीगा निकला ।
आँखों से मेरी यह आँसू कब हैं थमने वाले ,
बैलोस चाहत से कोई चाहने वाला निकला ।
इक तू ही है पाखी जो मेरी रुह में बसना चाहे ,
वरना अभी तक सब का मतलब से नाता निकला ।
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