देह देखते हो


रिश्तों के जतन है
जिंदगी सुखन है
है प्रेम भीतर
और अपनापन है
जलन भी है यहां,
और एक चुभन है
हाँ,मेरे पास भी
मेरा अपना मन है

तुम न प्यार देखते
न ही नेह देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी
देह देखते हो।

थकता हुआ जरा सा
विश्राम चाहता है
मिल जाए गर जरा
आराम चाहता है
खुद के साथ गुज़ार लूं
मेरा ही अकेलापन है
ताउम्र मेरे साथ होगा
मेरा अपना बदन है।

मेरी भी अपनी इच्छा है,
इक मेरी भी निजता है
पर कहाँ तुम सब ये देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी देह देखते हो।

इंसान ही हूँ मैं
सिर्फ तन नहीं हूं
ताले न लगा मुझ पर
मैं धन नहीं हूं
विवश गर हूं मैं तो
उसमें तेरा दोष है
मुझे जो बांधती है
सिर्फ तेरी सोच है
जो मैं नहीं हूं
तुम उसे देखते हो
तुम तो सिर्फ़ मेरी
देह देखते हो।

तुम्हें है जो देखना
तुम वही देखते हो
मेरे भीतर आग भी
तुम नहीं देखते हो
प्रचंड पवन मन की
न तुम कहीं देखते हो
न आंखो से बरसता
तुम मेह देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी
देह देखते हो।

प्रकाश सिंह

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