तो ये दीवाली फिर से इक बार मीठी और खास हो जाए

1)
कुछ बिसरे दिन, कुछ लोग पुराने गर फिर से साथ हो जाए
तो ये दीवाली फिर से इक बार मीठी और खास हो जाए

दिवाली की छुट्टियों के
होमवर्क से सजे होते थे
नई कॉपियों के पन्ने पहले
उसके बाद उसमें
होता था एक अधूरा होमवर्क
और फिर पूरी खाली नोटबुक
हरबार की तरह
मगर जिसमें छुपी होती थी
ढेरों खुशियां,
खुद गुम होकर खेल को रोक देने वाली
एक पीली टेनिस बॉल
छुप्पम छुपाई में
नीम की ओट में छुपे
लड़के का झांकता
चेहरा
मेहमानों से मिलने वाला
एक रूपया
उससे खरीदी हुई
चंद टॉफियां
और गले में उतरती
हुई उनकी मिठास
शाम को थक तो जाते थे
हमारे नन्हे जिस्म मगर
फिर भी रूह को छू लेती थीं
खुशियां,अपनो और अपनेपन
के बीच सुकूँ से भरी हुई थी
छोटी सी इक हमारी जन्नत

आज कहीं फिर से हमें बस वही रूहानी अहसास हो जाए
तो ये दीवाली एक बार फिर से मीठी और खास हो जाएं
2)
आंगनों को लीपती
कोरती दीवारों को
बुआ चाचियों की
खिलखिलाहटें
नवोढ़ाओ की
फुसफुसाहटें
बुजुर्गों के कदमों
की आहटें
मां की रसोई में
घूघरी की मीठी खुशबू
गीली माटी को
खूंदते और उस आंगन को
फिर नया बनाते हुए
हमारे नन्हे नन्हे पांव
इतना ही खूबसूरत
इतना ही प्यारा गांव
जिसके राज अभी
तक अपने सीने में
छुपा रखे हैं,
वह लड़का अभी तक
भी खेत से वापस
नही लौटा है
जब मैं एक शाम को
शहर को निकल गया था
शायद मेरे भी कुछ
राज वह आज भी
सँभाले बैठा है
उसका भी एक हमराज
आज तक शहर से कभी
वापस नहीं लौटा है

अपनी झिझक छोड़ कर गर हम फिर से हमराज हो जाएं
तो ये दीवाली एक बार फिर से मीठी और खास हो जाए

3)
वो प्यारी सी बहने
दीपक की बाटी बनाती
छत पे दीपक सजाती
सौंप के अपने पटाखे
फुलझड़ियों को ले लेती
भाई की मुस्कानों में
देखती अपनी खुशियां
है आज गुमसुम
अकेली सी
सम्हालती घर और
गुलामी इक साथ दोनों
भाभी और ननदों
में बस रश्क का रिश्ता
और दूरियां इतनी कि
कोई किसी को न सुन पाए
काश बदल जाए यह सब कुछ

ये दूरियाँ सिमटे और इक दूजे के हम कुछ पास हो जाएं
ये दीवाली एक बार फिर से मीठी और खास हो जाए

प्रकाश पाखी

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